Dularchand Yadav Murder: बिहार की राजनीति में अपराध और सत्ता का रिश्ता फिर सुर्खियों में है। पटना जिले के मोकामा विधानसभा क्षेत्र में गुरुवार की दोपहर कुख्यात बाहुबली नेता दुलारचंद यादव की गोली मारकर हत्या कर दी गई। यह वारदात न केवल मोकामा बल्कि पूरे राज्य की राजनीति को झकझोर देने वाली साबित हुई है। दुलारचंद यादव हाल ही में जन सुराज पार्टी के प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी के समर्थन में सक्रिय रूप से प्रचार कर रहे थे। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के बीच हुई यह हत्या एक बार फिर उस पुरानी सच्चाई को उजागर करती है कि बिहार की राजनीति में आज भी बारूद और बाहुबल की भूमिका खत्म नहीं हुई है।
Dularchand Yadav Murder: कौन थे दुलारचंद यादव?
दुलारचंद यादव का नाम बिहार की राजनीति और अपराध, दोनों ही दुनिया में जाना-पहचाना था। कभी वे राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के करीबी माने जाते थे, तो कभी जेडीयू नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मंच पर भी देखे गए। साल 2022 के मोकामा उपचुनाव में उन्होंने बाहुबली अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी को समर्थन दिया था, जिन्होंने आरजेडी के टिकट पर जीत हासिल की थी।
बाढ़ और मोकामा के टाल इलाके में उनकी पकड़ बहुत मजबूत थी, खासकर यादव समुदाय में उनका प्रभाव काफी गहरा था। लेकिन राजनीतिक पहचान के साथ-साथ उन पर कई आपराधिक मामले भी दर्ज रहे जिनमें हत्या, रंगदारी, अपहरण और ज़मीन कब्ज़ा जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं।
1991 का मामला जब नीतीश कुमार भी आए थे विवादों में
16 नवंबर 1991 को बाढ़ के पंडारक मतदान केंद्र पर कांग्रेस नेता सीताराम सिंह की हत्या कर दी गई थी। इस केस में नीतीश कुमार, दुलारचंद यादव और दो अन्य पर एफआईआर दर्ज की गई थी। हालांकि, बाद में पुलिस ने नीतीश कुमार को इस केस से मुक्त कर दिया, मगर यह मामला बिहार की राजनीति में वर्षों तक जिंदा रहा। 2009 में यह केस फिर से सुर्खियों में आया, जब बाढ़ कोर्ट ने नीतीश कुमार के खिलाफ दोबारा केस चलाने की अनुमति दी। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहाँ 2019 में नीतीश को बरी कर दिया गया।
लालू से नीतीश, फिर प्रशांत किशोर तक बदलते सियासी समीकरण
2017 में जब महागठबंधन टूटा, तब दुलारचंद यादव ने खुलकर नीतीश विरोध का रुख अपनाया। माना जाता है कि उन्होंने उस समय राजद को नीतीश से जुड़े पुराने केस की कई जानकारियाँ दीं। हालांकि, कुछ समय बाद वे फिर नीतीश के करीब आए और जेडीयू के मंच पर भी देखे गए। लेकिन यह समीकरण ज्यादा दिन नहीं चला। 2019 में उनकी गिरफ्तारी के बाद उनके और नीतीश कुमार के बीच रिश्ते बिगड़ गए।
2025 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी का समर्थन किया और पीयूष प्रियदर्शी के प्रचार में जुटे हुए थे। इसी दौरान मोकामा के घोसवरी थाना क्षेत्र में हुए झगड़े में उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई।
हत्या का आरोप और सियासी उबाल
दुलारचंद यादव की हत्या के बाद उनके परिजनों ने जेडीयू प्रत्याशी अनंत सिंह और उनके समर्थकों पर हत्या का आरोप लगाया है। पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है, लेकिन मोकामा का माहौल तनावपूर्ण बना हुआ है। स्थानीय लोगों में भय और गुस्सा दोनों देखने को मिल रहा है।
बिहार की सियासत और ‘बाहुबली संस्कृति’
बिहार की राजनीति में दुलारचंद यादव का नाम उस दौर की याद दिलाता है जब सत्ता, अपराध और जातीय समीकरणों का संगम हुआ करता था। उनकी हत्या ने यह सवाल फिर खड़ा कर दिया है। क्या बिहार अब भी उस दौर से पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाया है? जहाँ आज भी चुनावी मैदान में वोट से ज़्यादा गोली की गूंज तय करती है कि किसकी ताकत ज़्यादा है।
बिहार की राजनीति में ‘दबंगों’ का असर अब भी ज़िंदा
दुलारचंद यादव का अंत बिहार की उस पुरानी सियासी परंपरा का प्रतीक है जहाँ राजनीति और अपराध की रेखा धुंधली हो जाती है। उनकी मौत सिर्फ एक व्यक्ति की हत्या नहीं, बल्कि उस व्यवस्था पर सवाल है जो दशकों से इन चेहरों को जन्म देती रही है। मोकामा की यह घटना बिहार के मतदाताओं और नेताओं दोनों के लिए एक चेतावनी है कि राजनीति में बदलाव केवल नारे से नहीं, चरित्र से आता है।









