Bihar Exit Poll: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुका है। दो चरणों में हुई इस बार की रिकॉर्डतोड़ वोटिंग ने प्रदेश की राजनीति में नया जोश भर दिया है। चुनाव आयोग के अनुसार, इस बार कुल 66.90 फीसदी मतदान दर्ज किया गया — यानी 40 साल बाद वोटिंग का आंकड़ा 65 प्रतिशत के पार पहुंचा है। यह पिछली बार के विधानसभा चुनाव (57.29%) की तुलना में लगभग 9.6 फीसदी ज्यादा है। इतनी बड़ी संख्या में लोगों के घरों से निकलकर मतदान केंद्रों तक पहुंचने का मतलब साफ है — जनता ने इस बार सोच-समझकर वोट डाला है।
Bihar Exit Poll: 14 नवंबर को खुलेगा EVM का ताला, सबकी निगाहें नतीजों पर
अब पूरा बिहार 14 नवंबर 2025 का इंतजार कर रहा है, जब ईवीएम के बंद बक्सों से जनता का फैसला बाहर आएगा। इस बार का चुनाव सिर्फ नेताओं की किस्मत नहीं बल्कि जनता की नाराजगी और उम्मीदों का नतीजा भी तय करेगा। राजनीतिक दलों के लिए ये वोट सिर्फ समर्थन नहीं, बल्कि प्रदर्शन की कसौटी हैं।
NOTA: खामोश नाराज़गी का ज़रिया
भले ही चुनावी चर्चा एनडीए और महागठबंधन के बीच सिमटी रही, लेकिन एक खामोश किरदार हर बार की तरह इस बार भी नतीजों का गणित पलटने की ताक़त रखता है — और वह है NOTA (None of the Above)। साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद लागू हुई यह व्यवस्था मतदाताओं को असहमति जताने का लोकतांत्रिक अधिकार देती है। बिहार में NOTA की भूमिका हर चुनाव में अहम रही है। आंकड़े बताते हैं कि 2020 के विधानसभा चुनाव में करीब 30 सीटों पर हार-जीत का अंतर NOTA वोटों से भी कम था।
उदाहरण के तौर पर हिल्सा सीट पर जीत का अंतर सिर्फ 12 वोटों का रहा। भोरे सीट पर करीब 8 हजार वोट NOTA के खाते में गए थे। अगर यह वोट किसी एक पार्टी की तरफ जाते, तो नतीजे पूरी तरह बदल सकते थे।
बढ़ता NOTA का ग्राफ
बिहार के मतदाता लंबे समय से NOTA का इस्तेमाल अपनी खामोश नाराजगी जताने के लिए करते आए हैं। 2015 के चुनाव में 2.5%, 2020 में 1.7% , 2024 लोकसभा चुनाव में यह फिर बढ़कर 2.1% तक पहुंच गया। अगर यह रुझान 2025 में भी जारी रहा, तो कई सीटों पर मुकाबले बेहद कांटे के हो सकते हैं। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इस बार कुछ सीटों पर “NOTA वोट” किंगमेकर बन सकता है।
जनता का मूड: बदलाव या भरोसा?
भले ही एग्जिट पोल सर्वेक्षण एनडीए की वापसी की संभावना जता रहे हैं, लेकिन जमीन पर जनता का मूड कुछ और ही कहानी कह रहा है। कई इलाकों में मतदाताओं ने कहा कि उन्होंने इस बार “बदलाव के नाम पर वोट” डाला है। वहीं कुछ क्षेत्रों में नीतीश सरकार की योजनाओं और केंद्र की नीतियों पर भरोसा जताने वाले वोटर भी सक्रिय रहे।
EVM नहीं, “नाराज वोट” तय करेगा सत्ता का रास्ता
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि इस बार का चुनाव मशीन नहीं, बल्कि “मूड” से तय होगा। यानी नतीजे तय करेंगे कि जनता ने विश्वास जताया है या फिर नाराजगी दिखाई है। एक बात तय है — बिहार की इस ऐतिहासिक वोटिंग ने आने वाले नतीजों को लेकर सबकी धड़कनें बढ़ा दी हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 केवल सीटों की लड़ाई नहीं, बल्कि जनमत का एक बड़ा इम्तिहान है। रिकॉर्ड वोटिंग, बढ़ता NOTA, और जनता का नया मूड— तीनों ने इस बार के चुनाव को बेहद दिलचस्प बना दिया है। अब देखना यह है कि 14 नवंबर को बिहार की जनता किसे अर्श पर बिठाती है और किसे फर्श पर उतार देती है।








