Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका है। जैसे-जैसे मतदान की तारीख करीब आ रही है, वैसे-वैसे राजनीतिक दलों के बीच सियासी बयानबाज़ी तेज होती जा रही है। चुनाव प्रचार के आखिरी दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार की जनता, खासकर महिलाओं को संबोधित करते हुए एक बड़ा संदेश दिया। उन्होंने कहा कि “वर्ष 2005 से पहले महिलाओं की स्थिति बेहद चिंताजनक थी। वे घर की चारदीवारी में कैद थीं, लेकिन हमारी सरकार बनने के बाद हमने उनके उत्थान और सशक्तिकरण को प्राथमिकता दी।”
Bihar Election 2025: 2005 से पहले का बिहार: जब महिलाएं घर की दीवारों तक सीमित थीं
नीतीश कुमार ने कहा कि 2005 से पहले का बिहार महिलाओं के लिए सबसे कठिन दौर था। शाम के बाद किसी महिला का अकेले सड़क पर निकलना असुरक्षित माना जाता था। अपराध का बोलबाला था, और लड़कियों की शिक्षा को लेकर समाज में जागरूकता का अभाव था। उन्होंने कहा कि उस समय की सरकारों को “आधी आबादी” की कोई परवाह नहीं थी। ग्रामीण इलाकों में स्कूल तो थे, लेकिन लड़कियां वहां जाने से डरती थीं। माता-पिता अपनी बेटियों की सुरक्षा को लेकर हमेशा चिंतित रहते थे। कॉलेजों में छात्राओं की संख्या बेहद कम थी। समाज में महिलाओं को न तो सम्मानजनक स्थान मिलता था और न ही निर्णय लेने का अधिकार।
महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति इतनी कमजोर थी कि वे अपने अधिकारों को पहचान ही नहीं पाती थीं। नीतीश कुमार के अनुसार, यही वह समय था जब उन्होंने तय किया कि अगर मौका मिला, तो वे बिहार की आधी आबादी को बराबरी का अधिकार दिलाएंगे।
सत्ता में आने के बाद शुरू हुआ परिवर्तन का दौर
24 नवंबर 2005 को नई सरकार के गठन के साथ ही नीतीश कुमार ने महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए ठोस कदम उठाने शुरू किए। उन्होंने महिलाओं के सशक्तिकरण को सिर्फ नारे तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे नीति का हिस्सा बना दिया। सबसे पहले पंचायत और नगर निकाय चुनावों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया गया। यह उस समय एक क्रांतिकारी फैसला था। इससे हजारों महिलाएं पहली बार मुखिया, सरपंच, वार्ड सदस्य और नगर परिषद अध्यक्ष बनीं। समाज में महिलाओं की आवाज़ को पहली बार राजनीतिक पहचान मिली।
फिर वर्ष 2013 में पुलिस भर्ती में महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया। आज बिहार पुलिस में महिलाओं की भागीदारी देश के अन्य सभी राज्यों से अधिक है। इसके साथ ही सभी सरकारी नौकरियों में 35 प्रतिशत आरक्षण लागू किया गया, जिससे महिलाओं के लिए रोजगार के नए रास्ते खुले।
शिक्षा में बदलाव: कन्या उत्थान योजना से बढ़ा आत्मविश्वास
महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की सबसे बड़ी कुंजी शिक्षा है। इस दिशा में बिहार सरकार ने कन्या उत्थान योजना शुरू की, जिसने बेटियों की जिंदगी बदल दी। इस योजना के तहत बेटी के जन्म से लेकर स्नातक की पढ़ाई तक सरकार हर चरण में आर्थिक सहायता देती है।
- बेटी के जन्म पर ₹2,000
- एक वर्ष पूरे होने पर आधार निबंधन के बाद ₹1,000
- दो वर्ष की उम्र पूरी होने पर वैक्सीनेशन हेतु ₹2,000
- नौवीं कक्षा में प्रवेश पर साइकिल खरीदने के लिए ₹3,000
- मैट्रिक पास करने पर ₹10,000
- इंटर पास करने पर ₹25,000
- स्नातक पास करने पर ₹50,000
कुल मिलाकर, एक बेटी को जन्म से लेकर ग्रेजुएशन तक ₹94,100 की सहायता राशि मिलती है। इससे बेटियों के माता-पिता में पढ़ाई को लेकर उत्साह बढ़ा है।
इसके अलावा, राज्य में हर पंचायत में 10+2 विद्यालयों की स्थापना की गई ताकि ग्रामीण बेटियां अपने गांव में ही उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें। स्कूल जाने के लिए मुफ्त साइकिल, किताबें और ड्रेस की सुविधा दी गई है। इन योजनाओं से लड़कियों के नामांकन में भारी वृद्धि हुई है और अब बिहार की बेटियां हर क्षेत्र में अपनी पहचान बना रही हैं।
मातृ-शिशु स्वास्थ्य में सुधार: जननी बाल सुरक्षा योजना बनी संजीवनी
2005 से पहले राज्य में प्रसव के दौरान महिलाओं को किसी भी तरह की सरकारी सहायता नहीं मिलती थी। कई महिलाएं असुरक्षित प्रसव के कारण अपनी जान गंवा बैठती थीं। लेकिन जननी बाल सुरक्षा योजना ने तस्वीर बदल दी। अब ग्रामीण इलाकों में प्रसव के लिए महिलाओं को ₹1,400 और शहरी क्षेत्रों में ₹1,000 सीधे बैंक खाते में दिए जाते हैं। यह राशि प्रसव के 48 घंटे के भीतर डीबीटी (Direct Benefit Transfer) के माध्यम से भेजी जाती है।
इस योजना के परिणाम बेहद सकारात्मक रहे हैं —
- मातृ मृत्यु दर 312 से घटकर 118 रह गई।
- शिशु मृत्यु दर 61 से घटकर 27 पर पहुंच गई।
- टीकाकरण दर 18% से बढ़कर 90% से अधिक हो गई।
इन सुधारों के कारण बिहार अब स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी देश के अग्रणी राज्यों में शामिल हो चुका है।
जीविका दीदियां: आत्मनिर्भरता की नई पहचान
वर्ष 2006 में शुरू की गई जीविका योजना ने बिहार की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव किया। पहले जहां महिलाओं की भूमिका घर तक सीमित थी, वहीं अब वे कृषि, पशुपालन और छोटे उद्योगों में सक्रिय रूप से भाग ले रही हैं। आज राज्य में करीब 11 लाख स्वयं सहायता समूह (SHG) हैं, जिनसे 1.4 करोड़ जीविका दीदियां जुड़ी हुई हैं। इन महिलाओं ने जैविक खेती, मधुमक्खी पालन, मत्स्य पालन और उद्यमिता के क्षेत्र में नई पहचान बनाई है।
“दीदी की रसोई” जैसी पहल ने अस्पतालों, सरकारी दफ्तरों और स्कूलों में सस्ते व पौष्टिक भोजन की व्यवस्था की है। अब इसका विस्तार सभी प्रखंडों और जिला अस्पतालों तक किया जा रहा है।
महिला उद्यमिता और रोजगार योजनाएं
महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त करने के लिए सरकार ने महिला उद्यमी योजना लागू की है। इसके तहत महिलाएं अपने व्यवसाय के लिए ₹10 लाख तक की आर्थिक सहायता प्राप्त कर सकती हैं। इसके अलावा, हाल ही में मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना की शुरुआत की गई है। इस योजना के तहत राज्य के हर परिवार की एक महिला को ₹10,000 की सहायता राशि दी जा रही है ताकि वे अपनी पसंद का रोजगार शुरू कर सकें।
अब तक 1 करोड़ 41 लाख महिलाओं के खाते में यह राशि भेजी जा चुकी है। नीतीश कुमार ने बताया कि यह राशि “कर्ज नहीं, बल्कि सम्मान की पूंजी” है, जिसे वापस नहीं लिया जाएगा। जो महिलाएं इस धन से बेहतर रोजगार शुरू करेंगी, उन्हें आगे ₹2 लाख तक की अतिरिक्त सहायता भी दी जाएगी।
सामाजिक सुधार: शराबबंदी और कुरीतियों के खिलाफ संघर्ष
नीतीश कुमार ने कहा कि समाज में सबसे ज्यादा नुकसान महिलाओं को ही कुरीतियों से होता है, खासकर शराब, दहेज और बाल विवाह जैसी बुराइयों से। इसी कारण राज्य में शराबबंदी कानून लागू किया गया, जो महिलाओं की पहल पर संभव हो सका। शराबबंदी से घरेलू हिंसा, पारिवारिक झगड़े और सामाजिक तनाव में भारी कमी आई है। इसके अलावा, दहेज प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ राज्यभर में व्यापक जनजागरण अभियान चलाया गया, जिसमें लाखों महिलाओं ने हिस्सा लिया।
बिहार की महिलाएं अब बदलाव की पहचान
आज बिहार की महिलाएं शिक्षा, राजनीति, प्रशासन, व्यवसाय और पुलिस – हर क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। जहां पहले महिलाएं पंचायत भवन तक नहीं जाती थीं, अब वे मुखिया, सरपंच और जिला परिषद अध्यक्ष बनकर गांव की नीतियां तय कर रही हैं। पुलिस में महिला सिपाही और अधिकारी राज्य की सुरक्षा का जिम्मा संभाल रही हैं। बेटियां इंजीनियरिंग, मेडिकल और प्रशासनिक सेवाओं में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं।
नीतीश कुमार का कहना है “हमने जो कहा, उसे पूरा किया है। आगे भी बिहार की बेटियों के सशक्तिकरण के लिए काम करते रहेंगे। महिलाएं आज बिहार की ताकत हैं, और उनका उत्थान ही राज्य की प्रगति की असली कुंजी है।” वर्ष 2005 से पहले और आज के बिहार में फर्क सिर्फ सरकार का नहीं, सोच का भी है। पहले जहां महिलाओं को समाज में बराबरी का हक नहीं था, आज वे अपने दम पर परिवार और राज्य की अर्थव्यवस्था चला रही हैं।
पंचायतों से लेकर पुलिस तक, विद्यालयों से लेकर विश्वविद्यालयों तक — अब हर जगह महिलाओं की भागीदारी और सम्मान बढ़ा है। बिहार का यह परिवर्तन इस बात का सबूत है कि जब किसी राज्य की बेटियां आगे बढ़ती हैं, तो पूरा समाज विकास की राह पर चलता है।








