Bihar Political Shock: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए को रिकॉर्ड तोड़ बहुमत मिला है और 202 सीटों की बड़ी जीत ने राज्य की सत्ता का रुख बदल दिया है। लेकिन नई विधानसभा की तस्वीर कई गंभीर सवाल भी खड़े करती है, क्योंकि जीतकर आए विधायकों में बड़ी संख्या उन लोगों की है जिनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। नवीनतम रिपोर्टों के अनुसार 243 में से 130 विधायक, यानी लगभग 53%, किसी न किसी अपराध के मामले का सामना कर रहे हैं। इनमें से 102 विधायकों पर हत्या, अपहरण, हिंसा और अन्य गंभीर अपराधों के आरोप हैं, जबकि छह विधायकों पर महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले दर्ज हैं, जो लोकतंत्र की गुणवत्ता पर बड़ा सवाल खड़ा करते हैं।
Bihar Political Shock: किस दल के कितने विधायक आरोपी?
पार्टीवार आंकड़े और भी चौंकाने वाले हैं। बीजेपी के 89 में से 54 विधायक आपराधिक मामलों में आरोपी हैं, जबकि जेडीयू के 85 में से 31 विधायकों के खिलाफ केस दर्ज हैं। विपक्ष की बात करें तो राजद के 25 में से 18 विधायकों पर गंभीर या सामान्य अपराध के आरोप हैं। खास बात यह है कि हत्या जैसे अपराधों में एनडीए के छह विधायक आरोपी पाए गए हैं, जिनमें भाजपा और जदयू के तीन-तीन विधायकों के नाम शामिल हैं। गंभीर अपराधों की श्रेणी में भाजपा के 43, जदयू के 23 और राजद के 14 विधायक सूचीबद्ध हैं, जिससे साफ है कि बिहार में अपराध और राजनीति का पुराना रिश्ता अब भी बरकरार है।
जातीय समीकरण: राजपूत सबसे आगे, करोड़पति विधायकों की बाढ़
नई विधानसभा में जातीय समीकरण भी रोचक तस्वीर पेश करते हैं। कुल निर्वाचित विधायकों में राजपूत समुदाय के 32 विधायक हैं, जो सबसे अधिक संख्या है। इसके अलावा यादव समुदाय के 26, भूमिहार समुदाय के 25 और मुस्लिम समुदाय के 11 विधायकों का चुनाव जीतना, बिहार की सामाजिक संरचना को स्पष्ट रूप से सामने रखता है। इस बार करोड़पति विधायकों की संख्या भी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है।
घोषित संपत्ति के अनुसार भाजपा के 77, जदयू के 78, कांग्रेस के सभी 6 और हम के लगभग 80% विधायक करोड़पति हैं। शिक्षा के मामले में देखें तो 243 में से 152 विधायक ग्रेजुएट या इससे अधिक शैक्षणिक योग्यता रखते हैं, जिससे विधानसभा का अकादमिक स्तर पिछली बार की तुलना में बेहतर दिखता है।
बाहुबली नेताओं का जलवा
बिहार की राजनीति में बाहुबलियों का असर हमेशा चर्चा में रहता है, और इस चुनाव में भी यह परंपरा जारी रही। मोकामा से जदयू के बाहुबली नेता अनंत सिंह ने जेल में रहते हुए चुनाव जीता। चुनाव से ठीक पहले उन्हें दुलारचंद यादव हत्याकांड में गिरफ्तार किया गया था। कुचायकोट के जदयू उम्मीदवार अमरेंद्र पांडेय और अन्य कई विवादित या प्रभावशाली परिवारों से जुड़े उम्मीदवारों ने भी जीत हासिल की, जिससे विधानसभा में बाहुबली प्रभाव का ग्राफ कम होने की जगह और अधिक बढ़ता हुआ दिखता है।
आपराधिक डेटा में बड़ा विरोधाभास
विधायकों के आपराधिक रिकॉर्ड को लेकर देश की दो प्रमुख एजेंसियों—ADR/द हिंदू और MyNeta—के बीच बड़े पैमाने पर आंकड़ों के विरोधाभास भी सामने आए हैं। उदाहरण के तौर पर, कुचायकोट के जदयू विधायक अमरेंद्र पांडेय के खिलाफ ADR की रिपोर्ट में सिर्फ एक गंभीर मामला दर्ज है, जबकि MyNeta के डाटा में उनके खिलाफ हत्या के चार और हत्या के प्रयास के चार सहित कुल आठ गंभीर मामलों का उल्लेख है।
दूसरे उदाहरण में साहेबगंज के भाजपा विधायक राजू कुमार सिंह के खिलाफ ADR ने शून्य गंभीर मामला बताया है, जबकि MyNeta के अनुसार उन पर जबरन वसूली के लिए चोट पहुंचाने का गंभीर आरोप दर्ज है। यह विरोधाभास न सिर्फ डाटा की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि बिहार की नई विधानसभा कितनी विवादित पृष्ठभूमि वाले विधायकों से भरी हुई है।
2025 की यह विधानसभा एक ओर जनादेश का सम्मान करती है तो वहीं दूसरी ओर लोकतांत्रिक व्यवस्था के सामने यह प्रश्न भी रखती है कि विकास, शिक्षा और पारदर्शिता की बात करने वाली राजनीति में आपराधिक छवि वाले विधायकों की इतनी बड़ी संख्या राज्य की दिशा को कैसे प्रभावित करेगी।
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